Tuesday 10 July 2012

छुद्रता से शूद्रता तक


v    '' शूद्र'' शब्द की प्रयुक्ति से पूर्व हमे ये समझने की सबसे ज़्यादा ज़रुरत है और  ये जानने कीसबसे ज्यादा ज़रुरत है  कि इस शब्द कि प्रथम नीव कि ईंट कहाँ है| शूद्र शब्द की उत्त्पत्ति '' छुद्र'' से हुई है...पूर्व वैदिक काल में जब मानव को ज्ञान की प्राप्ति हुई और सप्त महर्षि ने ज्ञान देने और इस मानव समाज को शिक्षित और सभ्य बनाने लिए नियम बनाए तो  ज्ञान अर्जित कर के उस ज्ञान ध्यान और शील को अर्जित कर सबको देने वालो को ब्राह्मण कहा और उनका काम केवल यही कहा गया  और इसी प्रकार कमज़ोर वर्ग की रक्षा करने के लिए जो अस्त्र शस्त्र का प्रयोग करें उन्हे क्षत्रिय और व्यापार कर के जो धनार्जन कर के समाज को धन, अनाज,वस्त्र तथा अन्य ज़रुरत की वस्तुएं उपलब्ध कराते थे वो वैश्य हुए  परन्तु इनका जाति से कोई लेना देना नहीं था और ही ये पीढ़ी दर पीढ़ी चलते थे ...लेकिन उस समय जो विचारों से प्रेरित होकर कर्म किया जाता था उसी के  अनुसार उसी कर्म जाति में  उस व्यक्ति को रखा जाता था...इसी के अनुसार जो व्यक्ति चाहे वो स्त्री या पुरुष कोई भी हो यदि वो निम्न या छुद्र विचारों से यानी अपने गंदे और दूषित विचारों से प्रेरित होकर कर्म करते थे उन्हे इस शिक्षित और सभी समाज से अलग कर दिया जाता था और उन्हे अलग दूर रहने निर्देश दिए जाते थे,,,उनको सज़ा के  तौर पर इस शिक्षित समाज के  वो सब कार्य करने होते थे जो विष्ठा सफाई के साथ स्थान शुध्धि तक के भी होते थे और वो इसी यानी सभ्य  समाज के  दान पर निर्भर रहते थे परन्तु इसका भी किसी जाति या जनम या पीढ़ी से कोई लेना देना नहीं था ये सब सिर्फ विचार और किये हुए ही कर्मो की उच्चता या निम्नता पर निर्धारित होता था...छुद्र विचार वाले व्यक्ति का समाज में सम्मानित स्थान नहीं होता था | यदि आज कोई बहुत ग्यानी व्यक्ति ये कहता है के शूद्र पैरो से जन्मे  हैं तो उनको ये भी समझना ज़रूरी है कि जब हम जनम लेते हैं तो सभी की जनम कुंडली में एक बात ज़रूर लिखी जाती  है कि प्रथम चरण ,द्वितीय चरण या तृतीय चरण में से किस चरण में जनम हुआ है और सोने के पैर,चांदी के पैर या लोहे के पैर से जनम हुआ है तो ये तो सिध्ध है कि हर मनुष्य चाहे वो किसी भी कुल का है लेता तो जनम पैरो से ही है और उसी तरह,उसी भाग से उसी क्रिया द्वारा जनम लेता है जैसे उस ईश्वर ने पशु का भी निर्धारित किया है तो सभी शूद्र हैं उस समय और शायद इसीलिए जाति का अर्थ भी यही है कि जा+इति=जनम के साथ जिसकी इति हो गई यानी जो समाप्त हो गई वो जाति| तो अब ये जाति को तो छोड़ दिया जाए तो ही ठीक है....बात है छुद्र विचार वालो की...जब हमारे महर्षियों ने ये समाज स्थापित किया जो जाति, द्वेष, इर्ष्या, छल, कपट से सर्वथा दूर था...पर जैसे जैसे मानव ज़्यादा समझदार होता या और स्वार्थ, लालच, अहंकार सर पर चढ़ कर बोलने लगा तो कब ये यानी उच्च समाज स्वयं छुद्र विचारों का स्वामी होता गया और कब एक गंदे मनन के  सदैव  रिसने वाले इस ज़ाती प्रथा के  कोढ़ से ग्रसित होता आया मालूम करने की कोशिश किसी ने नहीं की....कब उच्च समाज और सभ्य  समाज ने निरीह पीड़ित उन निर्बल लोगो को अपने आराम और स्वार्थ के लिए प्रयुक्त करना शुरू का दिया ये उच्च समाज ने नहीं सोचा...आज जब किसी कही जाने वाली उच्च जाति का बेशरम व्यक्ति छुद्रता की पराकाष्ठा को पार कर किसी कही जाने वाली निम्न जाति की लड़की स्त्री के  साथ अभद्रता करता है या बलात्कार करता है या छेड़खानी करता है तो उसकी जाति क्यों नहीं जाती???????क्योकि वो तो छुद्र से भी छुद्रतम है...शूद्र कोई नहीं और शूद्र हम सब हैं जब हम शौच जाते हैं...बच्चे को जनम देते हैं...अपने जूते पहनते हैं ,साफ़ करते हैं,और भी बहुत  से काम हम वही करते हैं...क्या किसी पंडित या ब्राह्मण के शौच जाने के बाद उसके शरीर की सफाई कोई और करता है?????वो स्वयं ही अपनी सफाई करता है तो फिर वो उस समय शूद्र हुआ या नहीं????वर्ण,वर या जाति कुछ नहीं सिर्फ हमारी बुध्धि सोच विचार और दिमाग की क्रिया है,अवस्था है...ये बातें हमे हमारे ज्ञान का और परिपक्वता का स्तर बताती हैं...हम सब ही जब विवेक और शील से ज्ञान  ध्यान करते हैं और उसी के  अनुसार कर्म करते हैं हम उस समय ब्राह्मण होते हैं...जब हम अपनी और सभी जीवो के  कल्याण और रक्षा से प्रेरित होकर कर्म करते हैं हम क्षत्रिय होते हैं....जब हम अपनी और सब जीवो के  कल्याण के  लिए धनार्जन करते हैं या वस्त्रार्जन करते हैं या भोजन अर्जित करते हैं तब हम वैश्य होते हैं और जब शौच ,जूते,सफाई से सम्बंधित काम करते हैं तो हम शूद्र हैं...हम किसी को प्रताड़ित करते हैं या अपने निम्न छुद्र विचारों से किसी को भी प्रताड़ित करते हैं तो हम निम्न से भी निम्नतम राक्षस ,दानव और दैत्य गति को प्राप्त होते हैं जो सर्वथा अक्षम्य है और इसकी कोई माफ़ी नहीं है यही '' छुद्र '' जाति  है...इसका किसी ख़ास व्यक्ति, जाति, समाज, देश या अन्य किसी विशेष से कोई लेना देना नहीं है और बल्कि आज पूरा मानव समाज इसी ''छुद्रता'' अधीन है...ये एक बेहद दुखद स्थिति है.....राधास्वमीजी...जय श्री कृष्ण जी....लिखित द्वारा --छवि मेहरोत्रा |